Vijendra singh jajra's

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बेटे भी घर छोड़ जाते हैं......................!

बेटे भी घर छोड़ के जाते हैं..
अपनी जान से ज़्यादा..प्यारा लेपटाॅप छोड़ कर...
अलमारी के ऊपर रखा...धूल खाता गिटार छोड़ कर...
जिम के सारे लोहे-बट्टे...और बाकी सारी मशीने...
मेज़ पर बेतरतीब पड़ी...वर्कशीट, किताबें, काॅपियाँ...
सारे यूँ ही छोड़ जाते है...बेटे भी घर छोड़ जाते हैं.!!
अपनी मन पसन्द ब्रान्डेड...जीन्स और टीशर्ट लटका...
अलमारी में कपड़े जूते...और गंध खाते पुराने मोजे...
हाथ नहीं लगाने देते थे... वो सबकुछ छोड़ जाते हैं...
बेटे भी घर छोड़ जाते हैं.!!
जो तकिये के बिना कहीं...भी सोने से कतराते थे...
आकर कोई देखे तो वो...कहीं भी अब सो जाते हैं...
खाने में सो नखरे वाले..अब कुछ भी खा लेते हैं...
अपने रूम में किसी को...भी नहीं आने देने वाले...
अब एक बिस्तर पर सबके...साथ एडजस्ट हो जाते हैं...
बेटे भी घर छोड़ जाते हैं.!!
घर को मिस करते हैं लेकिन...कहते हैं 'बिल्कुल ठीक हूँ'...
सौ-सौ ख्वाहिश रखने वाले...अब कहते हैं 'कुछ नहीं चाहिए'...
पैसे कमाने की होड़ में...वो भी कागज बन जाते हैं...
सिर्फ बेटियां ही नहीं साहब...
. . . . बेटे भी घर छोड़ जाते हैं..!

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